Durga Kavach PDF in Hindi Free Download – श्री दुर्गा कवच पीडीएफ

Durga Kavach PDF in Hindi Free Download –आज हम आपको Durga Kavach PDF In Hindi अर्थात् हिंदी में सरल भाषा अनुवाद सहित दुर्गा कवच PDF प्रदान कर रहे हैं। प्रतिदिन अथवा नवरात्रि आदि विशेष पर्वों में इस दुर्गा कवच का पाठ करने से सभी इच्छाएँ पूर्ण होती हैं।

श्री दुर्गा कवच पीडीएफ मां दुर्गा कवच संपूर्ण संसार के 18 पुराणों में से सबसे अधिक शक्तिशाली पुराण मार्कंडेय पुराण का हिस्सा है यह एक तरह का मां दुर्गा का पाठ है जो हमारी सब से रक्षा करता है तथा हमें साहस और हिम्मत प्रदान करता है इसके अलावा इसमें अद्भुत शक्ति होती है जो कि व्यक्ति के शत्रु से उसकी रक्षा करती है हिंदू धर्म में ऐसा माना जाता है कि मां दुर्गा कवच को भगवान ब्रह्मा जी ने ऋषि मार्कंडेय को सुनाया था इस कवच में कुल 47 अशोक सम्मिलित है तथा इन लोगों को पढ़ने से या फिर सुनने से आप के ऊपर सदैव दुर्गा मां का आशीर्वाद रहता है.

दुर्गा कवच पाठ हिंदी में PDF डाउनलोड कर आप भी आसानी से इसका पाठ कर सकते हैं। दुर्गा कवच का पाठ अत्यंत चमत्कारिक है।

दुर्गा कवच के चमत्कारिक रहस्य जानने के लिए एवं दुर्गा कवच पाठ हिंदी में PDF डाउनलोड करने के लिए Durga Kavach PDF In Hindi पाने के लिए इस आर्टिकल को पढते रहिए। अंत में दुर्गा कवच पाठ हिंदी में पीडीएफ लिंक दिया गया है।

दुर्गा देवी कवच PDF | Durga Devi Kavach Hindi PDF

दुर्गा कवच का पाठ कैंसे करें- इसके लिए आपको बहुत सारी बातों का ध्यान रखना चाहिए।

  • प्रातः स्नान आदि से निवृत्त हो जाएं।
  • माँ दुर्गा की यथाशक्ति पूजा करें।
  • धूप दीप आदि जलाएं।
  • माँ का शृंगार आदि करें।
  • पंचामृत से स्नान कराएं।
  • दुर्गा कवच आदि का पाठ करें।

दुर्गा कवच पाठ करने के फायेदे | Benefits of Durga Kavach PDF in Hindi

  • मां दुर्गा कवच का पाठ करने से से पहले सप्तश्लोकी दुर्गा का पाठ करे |
  • मां दुर्गा कवच का पाठ करने से हमारे शरीर को सकारात्मक शक्ति मिलती है|
  • मां दुर्गा कवच का पाठ करने से माँ अंजना का आशीर्वाद मिलाता है
  • मां दुर्गा कवच का पाठ करने से जीवन में आये बुरे वक़्त से लड़ने की हिम्मत और साहस मिलता है
  • मां दुर्गा कवच का पाठ करने से सद-बुद्धि, धन-बल और ज्ञान-विवेक की प्राप्ति होती है।
  • मां दुर्गा कवच का पाठ करने से वैवाहिक रिश्तों को भी लाभ मिलाता है |
  • मां दुर्गा कवच का पाठ करने से वो हर तरह के सुख का भागीदार बनता है।

मां दुर्गा कवच का पाठ करने की विधि | How to do Durga Kavach in Hindi

  • सुबह जल्दी उठ कर नित्य क्रिया कर के जल्दी स्नान करे |
  • फिर साफ कपडे पहन कर मंदिर में या अपने पूजा का स्थान पर पूजा सामग्री तैयार करे |
  • पाठ करने से पहले सप्तश्लोकी दुर्गा का पाठ करना चाहिए |
  • देसी घी का दीपक जलाकर पाठ करना चाहिए |
  • शरीर की बीमारी मैं हमें दुर्गा कवच का पाठ एक बार करना चाहिए |
  • दुर्गा कवच में शरीर के सभी अंगो का वर्णन किया गया है और हमें इसका पाठ करते समय यह है कल्पना करनी चाहिए कि हमारी शरीर की बीमारियों से छुटकारा मिला है और हम ठीक हो रहे हैं |
  • दुर्गा कवच का पाठ करने से हमारे दिमाग पर मनोवैज्ञानिक प्रभाव पड़ता है |
  • अंतिम नवरात्रा को या फिर (अष्टमी या नवमी) के दिन मां दुर्गा पूजा के समय हवन में काले तिलों से हवन करना और लाभकारी माना जाता है |
Name of Book Durga Kavach PDF in Hindi
PDF Size 3 MB
No of Pages 11
Language Hindi

Durga Kavach PDF in Hindi Lyrics – देवी दुर्गा कवच लिरिक्स

।। माँ दुर्गा देवी कवच ।।
।। ॐ श्री गणेशाय नमः ।।

ऋषि मार्कंड़य ने पूछा जभी, दया करके ब्रह्माजी बोले तभी ।
के जो गुप्त मंत्र है संसार में, हैं सब शक्तियां जिसके अधिकार में ।।
हर इक का कर सकता जो उपकार है, जिसे जपने से बेडा ही पार है ।।
पवित्र कवच दुर्गा बलशाली का,  जो हर काम पूरे करे सवाली का ।।

सुनो मार्कंड़य मैं समझाता हूँ,  मैं नवदुर्गा के नाम बतलाता हूँ ।।
कवच की मैं सुन्दर चोपाई बना, जो अत्यंत हैं गुप्त देयुं बता ।।
नव दुर्गा का कवच ये, पढे जो मनचित लाये ।
उस पे किसी प्रकार का, कभी कष्ट न आये ।।

कहो जय जय महारानी की, जय दुर्गा अष्ट भवानी की ।।
कहो जय जय महारानी की, जय दुर्गा अष्ट भवानी की ।।
पहली शैलपुत्री कहलावे, दूसरी ब्रह्मचरिणी मन भावे ।।
तीसरी चंद्रघंटा शुभ नाम, चौथी कुष्मांडा सुखधाम ।।

पांचवी देवी स्कंदमाता, छटी कात्यायनी विख्याता ।।
सातवी कालरात्रि महामाया, आठवी महागौरी जग जाया ।।
नौवी सिद्धिरात्रि जग जाने, नव दुर्गा के नाम बखाने ।।
महा संकट में वन में रण में, रुप होई उपजे निज तन में ।।

महाविपत्ति में व्योवहार में, मान चाहे जो राज दरबार में ।।
शक्ति कवच को सुने सुनाये, मनोकामना सिद्धी नर पाए ।।
चामुंडा है प्रेत पर, वैष्णवी गरुड़ सवार ।।
बैल चढी महेश्वरी हाथ लिए हथियार ।।
कहो जय जय महारानी की, जय दुर्गा अष्ट भवानी की ।।
कहो जय जय महारानी की, जय दुर्गा अष्ट भवानी की ।।

Durga Kavach PDF

हंस सवारी वाराही की, मोर चढी दुर्गा कौमारी ।।
लक्ष्मी देवी कमल असीना, ब्रह्मी हंस चढी ले वीणा ।।
ईश्वरी सदा बैल सवारी, भक्तन की करती रखवारी ।।
शंख चक्र शक्ति त्रिशुला, हल मूसल कर कमल के फ़ूला ।।

दैत्य नाश करने के कारन, रुप अनेक है किन्हें धारण ।।
बार बार मैं सीस नवाऊ, जगदम्बे के गुण को गाऊँ ।।
जगदम्बे के गुण को गाऊँ, जगदम्बे के गुण को गाऊँ ।।
कष्ट निवारण बलशाली माँ, दुष्ट संहारण महाकाली माँ ।।

कोटि कोटि माता प्रणाम, पूरण कीजो मेरे काम ।।
दया करो बलशालिनी, दास के कष्ट मिटाओ ।।
दास की रक्षा को सदा, सिंह चढी माँ आओ ।।
कहो जय जय महारानी की, जय दुर्गा अष्ट भवानी की ।।
कहो जय जय महारानी की, जय दुर्गा अष्ट भवानी की ।।

अग्नि से अग्नि देवता, पूरब दिशा में ऐन्द्री ।।
दक्षिण में वाराही मेरी, नैऋत्य में खडग धारिणी ।।
वायु से माँ मृग वाहिनी, पश्चिम में देवी वारुणी ।।
उत्तर में माँ कौमारी जी, ईशान में शूलधारिणी ।।

ब्राह्मणी माता अर्श पर, माँ वैष्णवी इस फर्श पर ।।
चामुंडा दसों दिशाओं में, हर कष्ट तुम मेरा हरो ।।
संसार में माता मेरी, रक्षा करो रक्षा करो ।।
रक्षा करो रक्षा करो, रक्षा करो रक्षा करो ।।

सन्मुख मेरे देवी जया, पाछे हो माता विजया ।।
अजीता खड़ी बाएं मेरे, अपराजिता दायें मेरे ।।
उद्योतिनी माँ शिखा की, माँ उमा देवी सिर की ही ।।
मालाधारी ललाट की, और भ्रुकुटी की माँ यशस्विनी ।।

भ्रुकुटी के मध्य त्रिनेत्रा, यम घंटा दोनो नासिका ।।
काली कपोलों की कर्ण, मूलों की माता शंकरी ।।
नासिका में अंश अपना, माँ सुगंधा तुम धरो ।।
संसार में माता मेरी, रक्षा करो रक्षा करो ।।
रक्षा करो रक्षा करो, रक्षा करो रक्षा करो ।।
Durga Kavach PDF

ऊपर व् नीचे होठों की, माँ चर्चिका अमृत कली ।।
जिव्हा की माता सरस्वती, दांतों की कौमारी सती ।।
इस कठ की माँ चण्डिका, और चित्रघंटा घंटी की ।।
कामाक्षी माँ ठोड़ी की, माँ मंगला इस वाणी की ।।

ग्रीवा की भद्रकाली माँ, रक्षा करे बलशाली माँ ।।
दोनो भुजाओं की मेरे, रक्षा करे धनुधारिणी ।।
दो हाथों के सब अंगों की, रक्षा करे जगतारिणी ।।
शुलेश्वरी, कुलेश्वरी, महादेवी, शोकविनाशानी ।।

छाती स्तनों और कन्धों की, रक्षा करे जगवासिनी ।।
हृदय उदर और नाभि की, कटी भाग के सब अंग की ।।
गुह्येश्वरी माँ पूतना, जग जननी श्यामा रंग की ।।
घुटनों जन्घाओं की करे, रक्षा वो विंध्यवासिनी ।।
टखनों व पावों की करे, रक्षा वो शिव की दासिनी ।।

रक्त मांस और हड्डियों से, जो बना शरीर ।।
आतों और पित वात में, भरा अग्न और नीर ।।
बल बुद्धि अंहकार और, प्राण ओ पाप समान ।।
सत रज तम के गुणों में, फँसी है यह जान ।।

धार अनेकों रुप ही, रक्षा करियो आन ।।
तेरी कृपा से ही माँ, चमन का है कल्याण ।।
आयु यश और कीर्ति धन, सम्पति परिवार ।।
ब्राह्मणी और लक्ष्मी, पार्वती जग तार ।।
विद्या दे माँ सरस्वती, सब सुखों की मूल ।।
दुष्टों से रक्षा करो, हाथ लिए त्रिशूल ।।

भैरवी मेरी भार्या की, रक्षा करो हमेश ।।
मान राज दरबार में, देवें सदा नरेश ।।
यात्रा में दुःख कोई न, मेरे सिर पर आये ।।
कवच तुम्हारा हर जगह, मेरी करे सहाए ।।

ऐ जगजननी कर दया, इतना दो वरदान ।।
लिखा तुम्हारा कवच ये, पढे जो निश्चय मान ।।
मनवांछित फल पाए, वो मंगल मूर्त बसाए ।।
कवच तुम्हारा पढ़ते ही, नवनिधि घर आये ।।

ब्रह्माजी बोले सुनो मार्कंड़य,
यह दुर्गा कवच मैंने तुमको सुनाया ।।
रहा आज तक था गुप्त भेद सारा,
जगत की भलाई को मैंने बताया ।।

सभी शक्तियां जग की करके एकत्रित,
है मिट्टी की देह को इसे जो पहनाया ।।
चमन जिसने श्रद्धा से इसको पढ़ा जो,
सुना तो भी मुह माँगा वरदान पाया ।।

Durga Kavach PDF

जो संसार में अपने मंगल को चाहे,
तो हरदम कवच यही गाता चला जा ।।
बियाबान जंगल दिशाओं दशों में,
तू शक्ति की जय जय मनाता चला जा ।।

तू जल में तू थल में तू अग्नि पवन में,
कवच पहन कर मुस्कुराता चला जा ।।
निडर हो विचर मन जहाँ तेरा चाहे,
चमन पाव आगे बढ़ता चला जा ।।

तेरा मान धन धान्य इससे बढेगा,
तू श्रद्धा से दुर्गा कवच को जो गाए ।।
यही मंत्र यन्त्र यही तंत्र तेरा,
यही तेरे सिर से हर संकट हटायें ।।

यही भूत और प्रेत के भय का नाशक,
यही कवच श्रद्धा व भक्ति बढ़ाये ।।
इसे नित्यप्रति चमन श्रद्धा से पढ़ कर,
जो चाहे तो मुह माँगा वरदान पाए ।।

इस स्तुति के पाठ से पहले कवच पढे,
कृपा से आदि भवानी की बल और बुद्धि बढे ।।
श्रद्धा से जपता रहे, जगदम्बे का नाम ।।
सुख भोगे संसार में। अंत मुक्ति सुखधाम ।।
कृपा करो मातेश्वरी, बालक चमन नादान ।।
तेरे दर पर आ गिरा, करो मैया कल्याण ।।

।। ॐ नमश्चण्डिकायै ॐ श्री दुर्गार्पणमस्तु ।।

अथः देव्याः कवचं | दुर्गा देवी कवच PDF | Durga Kavach PDF हिन्दी अनुवाद सहित

देवी कवच में शरीर के समस्त अंगों का उल्लेख है। देवी कवच पढते जाइये, और भगवती से कामना करते रहें कि हम निरोगी रहें:
ॐ नमश्चण्डिकायै।

॥मार्कण्डेय उवाच॥
ॐ यद्गुह्यं परमं लोके सर्वरक्षाकरं नृणाम्।
यन्न कस्य चिदाख्यातं तन्मे ब्रूहि पितामह॥1॥

अर्थ :-मार्कण्डेय जी ने कहा हे पितामह! जो इस संसार में परम गोपनीय तथा मनुष्यों की सब प्रकार से रक्षा करने वाला है और जो अब तक आपने दूसरे किसी के सामने प्रकट नहीं किया हो, ऐसा कोई साधन मुझे बताइये।

॥ब्रह्मोवाच॥
अस्ति गुह्यतमं विप्र सर्वभूतोपकारकम्‌।
देव्यास्तु कवचं पुण्यं तच्छृणुष्व महामुने॥2॥

अर्थ :-ब्रह्मन्! ऐसा साधन तो एक देवी का कवच ही है, जो गोपनीय से भी परम गोपनीय, पवित्र तथा सम्पूर्ण प्राणियों का उपकार करनेवाला है. हे महामुने! आप उसे श्रवण करें.

प्रथमं शैलपुत्री च द्वितीयं ब्रह्मचारिणी।
तृतीयं चन्द्रघण्टेति कूष्माण्डेति चतुर्थकम्‌॥3॥

अर्थ :-प्रथम नाम शैलपुत्री है, दूसरी मूर्तिका नाम ब्रह्मचारिणी है। तीसरा स्वरूप चन्द्रघण्टा के नामसे प्रसिद्ध है। चौथी मूर्ति को कूष्माण्डा कहते हैं।

पंचमं स्कन्दमातेति षष्ठं कात्यायनीति च।
सप्तमं कालरात्रीति महागौरीति चाष्टमम्‌॥4॥

अर्थ :- पाँचवीं दुर्गा का नाम स्कन्दमाता है। देवी के छठे रूप को कात्यायनी कहते हैं। सातवाँ कालरात्रि और आठवाँ स्वरूप महागौरी के नाम से प्रसिद्ध है।

नवमं सिद्धिदात्री च नवदुर्गाः प्रकीर्तिताः।
उक्तान्येतानि नामानि ब्रह्मणैव महात्मना॥5॥

अर्थ :- नवीं दुर्गा का नाम सिद्धिदात्री है। ये सब नाम सर्वज्ञ महात्मा वेदभगवान् के द्वारा ही प्रतिपादित हुए हैं। ये सब नाम सर्वज्ञ महात्मा वेदभगवान् के द्वारा ही प्रतिपादित हुए हैं

अग्निना दह्यमानस्तु शत्रुमध्ये गतो रणे।
विषमे दुर्गमे चैव भयार्ताः शरणं गताः॥6॥

अर्थ :- जो मनुष्य अग्नि में जल रहा हो, रणभूमि में शत्रुओं से घिर गया हो, विषम संकट में फँस गया हो तथा इस प्रकार भय से आतुर होकर जो भगवती दुर्गा की शरण में प्राप्त हुए हों, उनका कभी कोई अमङ्गल नहीं होता।

न तेषां जायते किञ्चिदशुभं रणसङ्कटे।
नापदं तस्य पश्यामि शोकदुःखभयं न ही॥7॥

अर्थ :- युद्ध समय संकट में पड़ने पर भी उनके ऊपर कोई विपत्ति नहीं दिखाई देती। उनके शोक, दु:ख और भय की प्राप्ति नहीं होती।

यैस्तु भक्त्या स्मृता नूनं तेषां वृद्धिः प्रजायते।
ये त्वां स्मरन्ति देवेशि रक्षसे तान्न संशयः॥8॥

अर्थ :-जिन्होंने भक्तिपूर्वक देवी का स्मरण किया है, उनका निश्चय ही अभ्युदय होता है। देवेश्वरि! जो तुम्हारा चिन्तन करते हैं, उनकी तुम नि:सन्देह रक्षा करती हो।

प्रेतसंस्था तु चामुण्डा वाराही महिषासना।
ऐन्द्री गजसमारूढा वैष्णवी गरुडासना॥9॥

अर्थ :- चामुण्डादेवी प्रेत पर आरूढ़ होती हैं। वाराही भैंसे पर सवारी करती हैं। ऐन्द्री का वाहन ऐरावत हाथी है। वैष्णवी देवी गरुड़ पर ही आसन जमाती हैं।

माहेश्वरी वृषारूढा कौमारी शिखिवाहना।
लक्ष्मी: पद्मासना देवी पद्महस्ता हरिप्रिया॥10॥

अर्थ :- माहेश्वरी वृषभ पर आरूढ़ होती हैं। कौमारी का मयूर है। भगवान् विष्णु की प्रियतमा लक्ष्मीदेवी कमल के आसन पर विराजमान हैं,और हाथों में कमल धारण किये हुए हैं।

श्वेतरूपधारा देवी ईश्वरी वृषवाहना।
ब्राह्मी हंससमारूढा सर्वाभरणभूषिता॥11॥

अर्थ :- वृषभ पर आरूढ़ ईश्वरी देवी ने श्वेत रूप धारण कर रखा है। ब्राह्मी देवी हंस पर बैठी हुई हैं और सब प्रकार के आभूषणों से विभूिषत हैं।

इत्येता मातरः सर्वाः सर्वयोगसमन्विताः।
नानाभरणशोभाढ्या नानारत्नोपशोभिताः॥12॥

अर्थ :-इस प्रकार ये सभी माताएँ सब प्रकार की योग शक्तियों से सम्पन्न हैं। इनके सिवा और भी बहुत-सी देवियाँ हैं, जो अनेक प्रकार के आभूषणों की शोभा से युक्त तथा नाना प्रकार के रत्नों से सुशोभित हैं।

दृश्यन्ते रथमारूढा देव्याः क्रोधसमाकुला:।
शङ्खं चक्रं गदां शक्तिं हलं च मुसलायुधम्॥13॥
खेटकं तोमरं चैव परशुं पाशमेव च।
कुन्तायुधं त्रिशूलं च शार्ङ्गमायुधमुत्तमम्॥14॥
दैत्यानां देहनाशाय भक्तानामभयाय च।
धारयन्त्यायुद्धानीथं देवानां च हिताय वै॥15॥

अर्थ :-ये सम्पूर्ण देवियाँ क्रोध में भरी हुई हैं और भक्तों की रक्षा के लिए रथ पर बैठी दिखाई देती हैं। ये शङ्ख, चक्र, गदा, शक्ति, हल और मूसल, खेटक और तोमर, परशु तथा पाश, कुन्त औ त्रिशूल एवं उत्तम शार्ङ्गधनुष आदि अस्त्र-शस्त्र अपने हाथ में धारण करती हैं। दैत्यों के शरीर का नाश करना,भक्तों को अभयदान देना और देवताओं का कल्याण करना यही उनके शस्त्र-धारण का उद्देश्य है।

नमस्तेऽस्तु महारौद्रे महाघोरपराक्रमे।
महाबले महोत्साहे महाभयविनाशिनि॥16॥

अर्थ :- महान् रौद्ररूप, अत्यन्त घोर पराक्रम, महान् बल और महान् उत्साह वाली देवी तुम महान् भय का नाश करने वाली हो, तुम्हें नमस्कार है

त्राहि मां देवि दुष्प्रेक्ष्ये शत्रूणां भयवर्धिनि।
प्राच्यां रक्षतु मामैन्द्रि आग्नेय्यामग्निदेवता॥17॥
दक्षिणेऽवतु वाराही नैऋत्यां खङ्गधारिणी।
प्रतीच्यां वारुणी रक्षेद् वायव्यां मृगवाहिनी॥18॥

अर्थ :- तुम्हारी और देखना भी कठिन है। शत्रुओं का भय बढ़ाने वाली जगदम्बिक मेरी रक्षा करो। पूर्व दिशा में ऐन्द्री इन्द्रशक्ति)मेरी रक्षा करे। अग्निकोण में अग्निशक्ति,दक्षिण दिशा में वाराही तथा नैर्ऋत्यकोण में खड्गधारिणी मेरी रक्षा करे। पश्चिम दिशा में वारुणी और वायव्यकोण में मृग पर सवारी करने वाली देवी मेरी रक्षा करे।

उदीच्यां पातु कौमारी ऐशान्यां शूलधारिणी।
ऊर्ध्वं ब्रह्माणी में रक्षेदधस्ताद् वैष्णवी तथा॥19॥

अर्थ :- उत्तर दिशा में कौमारी और ईशानकोण में शूलधारिणी देवी रक्षा करे। ब्रह्माणि!तुम ऊपर की ओर से मेरी रक्षा करो और वैष्णवी देवी नीचे की ओर से मेरी रक्षा करे ।

एवं दश दिशो रक्षेच्चामुण्डा शववाहाना।
जाया मे चाग्रतः पातु: विजया पातु पृष्ठतः॥20॥

अर्थ :- इसी प्रकार शव को अपना वाहन बनानेवाली चामुण्डा देवी दसों दिशाओं में मेरी रक्षा करे। जया आगे से और विजया पीछे की ओर से मेरी रक्षा करे।

अजिता वामपार्श्वे तु दक्षिणे चापराजिता।
शिखामुद्योतिनि रक्षेदुमा मूर्ध्नि व्यवस्थिता॥21॥

अर्थ :- वामभाग में अजिता और दक्षिण भाग में अपराजिता रक्षा करे। उद्योतिनी शिखा की रक्षा करे। उमा मेरे मस्तक पर विराजमान होकर रक्षा करे।

मालाधारी ललाटे च भ्रुवौ रक्षेद् यशस्विनी।
त्रिनेत्रा च भ्रुवोर्मध्ये यमघण्टा च नासिके॥22॥

अर्थ :- ललाट में मालाधरी रक्षा करे और यशस्विनी देवी मेरी भौंहों का संरक्षण करे। भौंहों के मध्य भाग में त्रिनेत्रा और नथुनों की यमघण्टा देवी रक्षा करे।

शंखिनी चक्षुषोर्मध्ये श्रोत्रयोर्द्वारवासिनी।
कपोलौ कालिका रक्षेत्कर्णमूले च शांकरी॥23॥

अर्थ :- ललाट में मालाधरी रक्षा करे और यशस्विनी देवी मेरी भौंहों का संरक्षण करे। भौंहों के मध्य भाग में त्रिनेत्रा और नथुनों की यमघण्टा देवी रक्षा करे।

नासिकायां सुगन्दा च उत्तरोष्ठे च चर्चिका।
अधरे चामृतकला जिह्वायां च सरस्वती॥24॥

अर्थ :- नासिका में सुगन्धा और ऊपर के ओंठ में चर्चिका देवी रक्षा करे। नीचे के ओंठ में अमृतकला तथा जिह्वा में सरस्वती रक्षा करे।

दन्तान्‌ रक्षतु कौमारी कण्ठदेशे तु चण्डिका।
घण्टिकां चित्रघण्टा च महामाया च तालुके॥25॥

अर्थ :- कौमारी दाँतों की और चण्डिका कण्ठप्रदेश की रक्षा करे। चित्रघण्टा गले की घाँटी और महामाया तालु में रहकर रक्षा करे।

कामाक्षी चिबुकं रक्षेद् वाचं मे सर्वमंगला।
ग्रीवायां भद्रकाली च पृष्ठवंशे धनुर्धरी॥26॥

अर्थ :- कामाक्षी ठोढी की और सर्वमङ्गला मेरी वाणी की रक्षा करे। भद्रकाली ग्रीवा में और धनुर्धरी पृष्ठवंश (मेरुदण्ड)में रहकर रक्षा करे।

नीलग्रीवा बहिःकण्ठे नलिकां नलकूबरी।
स्कन्धयोः खड्गिनी रक्षेद् बाहू में व्रजधारिणी॥27॥

अर्थ :- कण्ठ के बाहरी भाग में नीलग्रीवा और कण्ठ की नली में नलकूबरी रक्षा करे। दोनों कंधों में खड्गिनी और मेरी दोनों भुजाओं की वज्रधारिणी रक्षा करे।

हस्तयोर्दण्डिनी रक्षेदम्बिका चांगुलीषु च।
नखांछूलेश्वरी रक्षेत्कुक्षौ रक्षेत्कुलेश्वरी॥28॥

अर्थ :-दोनों हाथों में दण्डिनी और उँगलियों में अम्बिका रक्षा करे। शूलेश्वरी नखों की रक्षा करे। कुलेश्वरी कुक्षि पेट)में रहकर रक्षा करे।

स्तनौ रक्षेन्महादेवी मनः शोकविनाशिनी।
हृदये ललिता देवी उदरे शूलधारिणी॥29॥

अर्थ :-महादेवी दोनों स्तनों की और शोकविनाशिनी देवी मन की रक्षा करे। ललिता देवी हृदय में और शूलधारिणी उदर में रहकर रक्षा करे।

नाभौ च कामिनी रक्षेद् गुह्यं गुह्येश्वरी तथा।
पूतना कामिका मेढ्रं गुदे महिषवाहिनी॥30॥

अर्थ :- नाभि में कामिनी और गुह्यभाग की गुह्येश्वरी रक्षा करे। पूतना और कामिका लिङ्ग की और महिषवाहिनी गुदा की रक्षा करे।

कट्यां भगवती रक्षेज्जानुनी विन्ध्यवासिनी।
जंघे महाबला रक्षेत्सर्वकामप्रदायिनी॥31॥

अर्थ :- भगवती कटि भाग में और विन्ध्यवासिनी घुटनों की रक्षा करे। सम्पूर्ण कामनाओं को देने वाली महाबला देवी दोनों पिण्डलियों की रक्षा करे।

गुल्फयोर्नारसिंही च पादपृष्ठे तु तैजसी।
पादांगुलीषु श्री रक्षेत्पादाधस्तलवासिनी॥32॥

अर्थ :- नारसिंही दोनों घुट्ठियों की और तैजसी देवी दोनों चरणों के पृष्ठभाग की रक्षा करे। श्रीदेवी पैरों की उँगलियों में और तलवासिनी पैरों के तलुओं में रहकर रक्षा करे।

नखान्‌ दंष्ट्राकराली च केशांश्चैवोर्ध्वकेशिनी।
रोमकूपेषु कौबेरी त्वचं वागीश्वरी तथा॥33॥

अर्थ :- अपनी दाढों के कारण भयंकर दिखायी देनेवाली दंष्ट्राकराली देवी नखों की और ऊर्ध्वकेशिनी देवी केशों की रक्षा करे। रोमावलियों के छिद्रों में कौबेरी और त्वचा की वागीश्वरी देवी रक्षा करे।

रक्तमज्जावसामांसान्यस्थिमेदांसि पार्वती।
अन्त्राणि कालरात्रिश्च पित्तं च मुकुटेश्वरी॥34॥

अर्थ :- पार्वती देवी रक्त, मज्जा, वसा, माँस, हड्डी और मेद की रक्षा करे। आँतों की कालरात्रि और पित्त की मुकुटेश्वरी रक्षा करे।

पद्मावती पद्मकोशे कफे चूडामणिस्तथा।
ज्वालामुखी नखज्वालामभेद्या सर्वसंधिषु॥35॥

अर्थ :- मूलाधार आदि कमल-कोशों में पद्मावती देवी और कफ में चूड़ामणि देवी स्थित होकर रक्षा करे। नख के तेज की ज्वालामुखी रक्षा करे। जिसका किसी भी अस्त्र से भेदन नहीं हो सकता, वह अभेद्या देवी शरीर की समस्त संधियों में रहकर रक्षा करे।

शुक्रं ब्रह्माणि मे रक्षेच्छायां छत्रेश्वरी तथा।
अहंकारं मनो बुद्धिं रक्षेन्मे धर्मधारिणी॥36॥

अर्थ :- ब्रह्माणी!आप मेरे वीर्य की रक्षा करें। छत्रेश्वरी छाया की तथा धर्मधारिणी देवी मेरे अहंकार,मन और बुद्धि की रक्षा करे।

प्राणापानौ तथा व्यानमुदानं च समानकम्‌।
वज्रहस्ता च मे रक्षेत्प्राणं कल्याणशोभना॥37॥

अर्थ :-हाथ में वज्र धारण करने वाली वज्रहस्ता देवी मेरे प्राण, अपान, व्यान, उदान और समान वायु की रक्षा करे। कल्याण से शोभित होने वाली भगवती कल्याण शोभना मेरे प्राण की रक्षा करे।

रसे रूपे च गन्धे च शब्दे स्पर्शे च योगिनी।
सत्त्वं रजस्तमश्चैव रक्षेन्नारायणी सदा॥38॥

अर्थ :- रस, रूप, गन्ध, शब्द और स्पर्श इन विषयों का अनुभव करते समय योगिनी देवी रक्षा करे तथा सत्त्वगुण,रजोगुण और तमोगुण की रक्षा सदा नारायणी देवी करे।

आयू रक्षतु वाराही धर्मं रक्षतु वैष्णवी।
यशः कीर्तिं च लक्ष्मीं च धनं विद्यां च चक्रिणी॥39॥

अर्थ :- वाराही आयु की रक्षा करे। वैष्णवी धर्म की रक्षा करे तथा चक्रिणी चक्र धारण करने वाली)देवी यश,कीर्ति,लक्ष्मी,धन तथा विद्या की रक्षा करे।

गोत्रमिन्द्राणि मे रक्षेत्पशून्मे रक्ष चण्डिके।
पुत्रान्‌ रक्षेन्महालक्ष्मीर्भार्यां रक्षतु भैरवी॥40॥

अर्थ :- इन्द्राणि! आप मेरे गोत्र की रक्षा करें. चण्डिके! तुम मेरे पशुओं की रक्षा करो. महालक्ष्मी मेरे पुत्रों की रक्षा करे और भैरवी पत्नी की रक्षा करे.

पन्थानं सुपथा रक्षेन्मार्गं क्षेमकरी तथा।
राजद्वारे महालक्ष्मीर्विजया सर्वतः स्थिता॥41॥

अर्थ :- मेरे पथ की सुपथा तथा मार्ग की क्षेमकरी रक्षा करे। राजा के दरबार में महालक्ष्मी रक्षा करे तथा सब ओर व्याप्त रहने वाली विजया देवी सम्पूर्ण भयों से मेरी रक्षा करे।

रक्षाहीनं तु यत्स्थानं वर्जितं कवचेन तु।
तत्सर्वं रक्ष मे देवि जयन्ती पापनाशिनी॥42॥

अर्थ :- देवी! जो स्थान कवच में नहीं कहा गया है, रक्षा से रहित है,वह सब तुम्हारे द्वारा सुरक्षित हो;क्योंकि तुम विजयशालिनी और पापनाशिनी हो।

पदमेकं न गच्छेतु यदीच्छेच्छुभमात्मनः।
कवचेनावृतो नित्यं यत्र यत्रैव गच्छति॥43॥
तत्र तत्रार्थलाभश्च विजयः सार्वकामिकः।
यं यं चिन्तयते कामं तं तं प्राप्नोति निश्चितम्‌।
परमैश्वर्यमतुलं प्राप्स्यते भूतले पुमान्‌॥44॥

अर्थ :- यदि अपने शरीर का भला चाहे तो मनुष्य बिना कवच के कहीं एक पग भी न जाए। कवच का पाठ करके ही यात्रा करे। कवच के द्वारा सब ओर से सुरक्षित मनुष्य जहाँ-जहाँ भी जाता है,वहाँ-वहाँ उसे धन-लाभ होता है तथा सम्पूर्ण कामनाओं की सिद्धि करने वाली विजय की प्राप्ति होती है। वह जिस-जिस अभीष्ट वस्तु का चिन्तन करता है, उस-उसको निश्चय ही प्राप्त कर लेता है। वह पुरुष इस पृथ्वी पर तुलना रहित महान् ऐश्वर्य का भागी होता है।

निर्भयो जायते मर्त्यः संग्रामेष्वपराजितः।
त्रैलोक्ये तु भवेत्पूज्यः कवचेनावृतः पुमान्‌॥45॥

अर्थ :- कवच से सुरक्षित मनुष्य निर्भय हो जाता है। युद्ध में उसकी पराजय नहीं होती तथा वह तीनों लोकों में पूजनीय होता है।

इदं तु देव्याः कवचं देवानामपि दुर्लभम्‌।
यः पठेत्प्रयतो नित्यं त्रिसन्ध्यं श्रद्धयान्वितः॥46॥
दैवी कला भवेत्तस्य त्रैलोक्येष्वपराजितः।
जीवेद् वर्षशतं साग्रमपमृत्युविवर्जितः॥47॥

अर्थ :- देवी का यह कवच देवताओं के लिए भी दुर्लभ है। जो प्रतिदिन नियमपूर्वक तीनों संध्याओं के समय श्रद्धा के साथ इसका पाठ करता है, उसे दैवी कला प्राप्त होती है। तथा वह तीनों लोकों में कहीं भी पराजित नहीं होता। इतना ही नहीं, वह अपमृत्यु रहित हो, सौ से भी अधिक वर्षों तक जीवित रहता है।

नश्यन्ति व्याधयः सर्वे लूताविस्फोटकादयः।
स्थावरं जंगमं चैव कृत्रिमं चापि यद्विषम्‌॥48॥
अभिचाराणि सर्वाणि मन्त्रयन्त्राणि भूतले।
भूचराः खेचराश्चैव जलजाश्चोपदेशिकाः॥49॥
सहजा कुलजा माला डाकिनी शाकिनी तथा।
अन्तरिक्षचरा घोरा डाकिन्यश्च महाबलाः॥50॥
ग्रहभूतपिशाचाश्च यक्षगन्धर्वराक्षसाः।
ब्रह्मराक्षसवेतालाः कूष्माण्डा भैरवादयः॥51॥
नश्यन्ति दर्शनात्तस्य कवचे हृदि संस्थिते।
मानोन्नतिर्भवेद् राज्ञस्तेजोवृद्धिकरं परम्‌॥52॥
यशसा वर्धते सोऽपि कीर्तिमण्डितभूतले।
जपेत्सप्तशतीं चण्डीं कृत्वा तु कवचं पुरा॥53॥

अर्थ :- मकरी, चेचक और कोढ़ आदि उसकी सम्पूर्ण व्याधियाँ नष्ट हो जाती हैं. कनेर, भाँग, अफीम, धतूरे आदि का स्थावर विष, साँप और बिच्छू आदि के काटने से चढ़ा हुआ जङ्गम विष तथा अहिफेन और तेल के संयोग आदि से बनने वाला कृत्रिम विष-ये सभी प्रकार के विष दूर हो जाते हैं,उनका कोई असर नहीं होता.इस पृथ्वी पर मारण-मोहन आदि जितने आभिचारिक प्रयोग होते हैं तथा इस प्रकार के मन्त्र-यन्त्र होते हैं, वे सब इस कवच को हृदय में धारण कर लेने पर उस मनुष्य को देखते ही नष्ट हो जाते हैं.

यही नहीं, पृथ्वी पर विचरने वाले ग्राम देवता, आकाशचारी देव विशेष, जल के सम्बन्ध से प्रकट होने वाले गण, उपदेश मात्र से सिद्ध होने वाले निम्नकोटि के देवता, अपने जन्म से साथ प्रकट होने वाले देवता, कुल देवता, माला, डाकिनी, शाकिनी, अन्तरिक्ष में विचरण करनेवाली अत्यन्त बलवती भयानक डाकिनियाँ, ग्रह, भूत, पिशाच, यक्ष, गन्धर्व, राक्षस, ब्रह्मराक्षस, बेताल, कूष्माण्ड और भैरव आदि अनिष्टकारक देवता भी हृदय में कवच धारण किए रहने पर उस मनुष्य को देखते ही भाग जाते हैं. कवचधारी पुरुष को राजा से सम्मान वृद्धि प्राप्ति होती है. यह कवच मनुष्य के तेज की वृद्धि करने वाला और उत्तम है.

यावद्भूमण्डलं धत्ते सशैलवनकाननम्‌।
तावत्तिष्ठति मेदिन्यां संततिः पुत्रपौत्रिकी॥54॥
देहान्ते परमं स्थानं यत्सुरैरपि दुर्लभम्‌।
प्राप्नोति पुरुषो नित्यं महामायाप्रसादतः॥55॥
लभते परमं रूपं शिवेन सह मोदते॥ॐ॥56॥

अर्थ :- कवच का पाठ करने वाला पुरुष को अपनी कीर्ति से विभूषित भूतल पर अपने सुयस के साथ-साथ वृद्धि प्राप्त होता है. जो पहले कवच का पाठ करके उसके बाद सप्तशती चण्डी का पाठ करता है, उसकी जब तक वन, पर्वत और काननों सहित यह पृथ्वी टिकी रहती है, तब तक यहाँ पुत्र-पौत्र आदि संतान परम्परा बनी रहती है.
देह का अन्त होने पर वह पुरुष भगवती महामाया के प्रसाद से नित्य परमपद को प्राप्त होता है, जो देवतोओं के लिए भी दुर्लभ है। वह सुन्दर दिव्य रूप धारण करता और कल्याण शिव के साथ आनन्द का भागी होता है।

॥ इति देव्याः कवचं संपूर्णम्‌ ॥

माँ दुर्गा का कवच अदभुत कल्याणकारी है। दुर्गा कवच मार्कंडेय पुराण से ली गई विशेष श्लोकों का एक संग्रह है और दुर्गा सप्तशी का हिस्सा है। नवरात्र के दौरान दुर्गा कवच का जाप देवी दुर्गा के भक्तों द्वारा शुभ माना जाता है।

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